उत्तर प्रदेश में जैविक खेती


कल्पना कीजिए, एक छोटा सा गांव, जहां किसानों ने रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल छोड़कर जैविक खेती को अपनाया। शुरुआत में उन्हें डर था कि कहीं उनकी फसलें खराब न हो जाएं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने देखा कि मिट्टी में नई जान आ गई है। गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट और हरी खाद ने मिट्टी को इतना उपजाऊ बना दिया कि फसलें लहलहाने लगीं। नीम का तेल, लहसुन का अर्क और मिर्च का घोल जैसे प्राकृतिक कीटनाशकों ने फसलों को कीटों से बचाया, और सबसे बड़ी बात यह कि इन फसलों में कोई रासायनिक अवशेष नहीं था। धीरे-धीरे यह गांव जैविक उत्पादों के लिए मशहूर हो गया, और किसानों की आय में भी वृद्धि हुई। लोगों ने महसूस किया कि जैविक खेती न केवल उनकी धरती को बचा रही है, बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी सुरक्षित कर रही है। यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है, जो प्रकृति के साथ जुड़कर अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है।
सुनने में ये बातें बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी भारत के किसानों के मन में जैविक खेती को लेकर एक भय की स्थिति है। किसान भयभीत हैं कि अगर वे जैविक खेती की ओर जाते हैं तो फसल अच्छी नहीं होगी, फसल की पैदावार में कमी आ जाएगी, और आर्थिक रूप से विपत्तिपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है। हालांकि, जैविक खेती को अपनाना कोई मुश्किल काम नहीं है; गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट, हरी खाद, नीम का तेल, लहसुन का अर्क और मिर्च का घोल जैसे प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करके हम भी इसकी ओर कदम बढ़ा सकते हैं। लेकिन यह तभी सफल हो सकता है जब इसे विशेषज्ञों द्वारा उचित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के साथ लागू किया जाए। बिना प्रशिक्षण के इसे अपनाना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि गलत तरीके से की गई जैविक खेती फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को प्रभावित कर सकती है। इस अंतर को पाटने के लिए, वाराणसी स्थित कृषक उत्पादक संगठन एवं औद्योगिक विपणन सहकारी समिति ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह संगठन किसानों और FPO (किसान उत्पादक संगठन) को जैविक खेती का व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह प्रशिक्षण किसानों को जैविक खेती के तरीकों से अवगत कराता है और उन्हें इसकी तकनीकी जानकारी प्रदान करता है। इससे किसानों का भय दूर होता है और वे जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं। यह संगठन किसानों को न केवल प्रशिक्षण देता है, बल्कि उन्हें जैविक उत्पादों के विपणन में भी सहायता प्रदान करता है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिलता है और उनकी आय में वृद्धि होती है।
1. जैविक खेती क्या है? (What is Organic Farming?)
जैविक खेती, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, प्राकृतिक और जैविक तरीकों से की जाने वाली खेती है। इसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और कृत्रिम संशोधित बीजों के स्थान पर जैविक खाद, हरी खाद, कम्पोस्ट और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। जैविक खेती से उत्पन्न फल और सब्जियां न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि ये हमारे स्वास्थ्य के लिए भी पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं, क्योंकि इनमें किसी भी प्रकार के रासायनिक अवशेष नहीं होते। यह खेती का तरीका न केवल हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखता है, बल्कि हमारे भविष्य को भी सुरक्षित करता है। जैविक खेती हमें यही सिखाती है कि जब हम प्रकृति के साथ चलेंगे, तभी हमारा जीवन सही मायनों में समृद्ध होगा। आइए, हम सब मिलकर इस सफर का हिस्सा बनें और अपनी धरती को, अपने स्वास्थ्य को और अपने भविष्य को सुरक्षित करें।
उत्तर प्रदेश में जैविक खेती का महत्व (Importance of Organic Farming in Uttar Pradesh)
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ जैविक खेती का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। जैविक खेती न केवल किसानों की आय बढ़ाती है, बल्कि यह मिट्टी की गुणवत्ता को भी सुधारती है। इसके अलावा, यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। खेती का यह तरीका न केवल हमारी धरती को बचाने का एक माध्यम है, बल्कि यह हमारे भविष्य को सुरक्षित करने का एक संकल्प भी है। यह हमें प्रकृति के साथ जुड़ने, उसकी गोद में वापस लौटने का अवसर देती है। जैविक खेती मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने, पर्यावरण को सुरक्षित रखने और किसानों की आय में वृद्धि करने का एक सशक्त माध्यम है। आइए, हम सब मिलकर इस सफर का हिस्सा बनें और अपनी धरती को, अपने स्वास्थ्य को और अपने भविष्य को सुरक्षित करें।
2. जैविक खेती की शुरुआत (Getting Started with Organic Farming)
जैविक खेती शुरू करना एक सरल और प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक अपनाने के लिए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना जरूरी है। यह न केवल मिट्टी और पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि किसानों के लिए भी एक टिकाऊ और लाभदायक विकल्प है। जैविक खेती शुरू करने से पहले कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
मिट्टी की तैयारी (Soil Preparation)
- मिट्टी की जांच: मिट्टी का pH स्तर संतुलित होना चाहिए। यदि मिट्टी अम्लीय या क्षारीय है, तो उसे संतुलित करने के लिए जैविक तरीकों का उपयोग करें।
- जैविक खाद का उपयोग: मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट और हरी खाद का उपयोग करें। ये खाद मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ाते हैं और उसे पोषण प्रदान करते हैं।
- मिट्टी की संरचना में सुधार: मिट्टी को ढीला और भुरभुरा बनाने के लिए नियमित रूप से जुताई करें और जैविक पदार्थों को मिलाएं।
- फसल चक्र का पालन: अलग-अलग फसलों को बारी-बारी से उगाकर मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखें।
जैविक खाद और उर्वरक (Organic Manures and Fertilizers)
खेती में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर प्राकृतिक खाद और उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। इनमें शामिल हैं:
जैविक उर्वरक: जैविक उर्वरक जैसे जीवामृत और पंचगव्य का उपयोग करके मिट्टी को पोषण दें।
गोबर की खाद: यह एक पारंपरिक और प्रभावी जैविक खाद है, जो मिट्टी को पोषण देती है और उसकी संरचना में सुधार करती है।
वर्मीकम्पोस्ट: केंचुआ खाद एक उच्च गुणवत्ता वाला जैविक उर्वरक है, जो मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाता है।
हरी खाद: दलहनी फसलें जैसे ढेंचा, सनई और लोबिया को उगाकर उन्हें मिट्टी में मिला दिया जाता है। ये फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं।
जैविक कीटनाशक (Organic Pesticides)
जैविक खेती में कीटों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इनमें शामिल हैं:
लहसुन और मिर्च का घोल: लहसुन और मिर्च का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से कीटों को दूर रखा जा सकता है।
नीम का तेल: नीम एक प्राकृतिक कीटनाशक है, जो कीटों को दूर रखता है और फसलों को सुरक्षित रखता है।
गौमूत्र: गौमूत्र का उपयोग कीटों को नियंत्रित करने और फसलों को पोषण देने के लिए किया जाता है।
3. जैविक खेती में उन्नत तकनीकों का उपयोग
जैविक खेती में उन्नत तकनीकों का उपयोग करके न केवल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन को भी बनाए रखा जा सकता है। इन तकनीकों में से एक महत्वपूर्ण तकनीक है फसल चक्र (Crop Rotation), हरी खाद (Green Manure), जल प्रबंधन (Water Management) और एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management)।
फसल चक्र (Crop Rotation)
इसमें अलग-अलग प्रकार की फसलों को बारी-बारी से उगाया जाता है, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है और मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बरकरार रहती है। उदाहरण के लिए, दलहनी फसलें जैसे चना, मूंग और उड़द मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं, जो अगली फसल के लिए लाभदायक होती है।
हरी खाद (Green Manure)
एक और प्रभावी तकनीक है हरी खाद (Green Manure)। इसमें दलहनी फसलों जैसे सनई, ढेंचा और लोबिया को उगाकर उन्हें मिट्टी में मिला दिया जाता है। ये फसलें मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ाती हैं और नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्वों को प्राकृतिक रूप से मिट्टी में जोड़ती हैं, जिससे मिट्टी की संरचना और उर्वरता में सुधार होता है।
जल प्रबंधन (Water Management)
जैविक खेती में जल प्रबंधन (Water Management) भी एक अहम भूमिका निभाता है। पानी की बचत करने और उसका सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम का उपयोग किया जाता है। ये तकनीकें न केवल पानी की बचत करती हैं, बल्कि फसलों को सही मात्रा में पानी उपलब्ध कराकर उनकी गुणवत्ता और उत्पादकता को भी बढ़ाती हैं।
एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management)
इसके अलावा, एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें प्राकृतिक तरीकों से कीटों को नियंत्रित किया जाता है। जैविक कीटनाशकों जैसे नीम का तेल, लहसुन का अर्क और मिर्च का घोल का उपयोग करके कीटों को दूर रखा जाता है। साथ ही, फसल चक्र और मिश्रित फसल प्रणाली जैसी तकनीकों का उपयोग करके कीटों के प्रकोप को कम किया जाता है। यह तकनीक न केवल फसलों को सुरक्षित रखती है, बल्कि पर्यावरण को भी हानि पहुंचाए बिना टिकाऊ खेती को बढ़ावा देती है।
इन उन्नत तकनीकों के माध्यम से जैविक खेती न केवल किसानों के लिए लाभदायक है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी एक सुरक्षित और टिकाऊ विकल्प प्रदान करती है। यह तकनीकें किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने और उनकी आय में वृद्धि करने में मदद करती हैं, जिससे जैविक खेती को और अधिक प्रभावी और लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
4. उत्तर प्रदेश सरकार की योजनाएं (Government Schemes in Uttar Pradesh)
उत्तर प्रदेश सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को इसकी ओर प्रेरित करने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चला रही है। ये योजनाएं न केवल किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, बल्कि उन्हें तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराती हैं।
परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana – PKVY)
यह योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई है, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में सफलतापूर्वक लागू किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देना और किसानों को रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग से दूर करना है। इसके तहत किसानों को जैविक खेती के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे वे जैविक खाद, बीज और अन्य आवश्यक सामग्री खरीद सकें। इस योजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए सब्सिडी (Subsidy for Organic Farming)
उत्तर प्रदेश सरकार जैविक खेती करने वाले किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। इसके तहत किसानों को जैविक खाद, बीज, और अन्य आवश्यक सामग्री खरीदने के लिए सब्सिडी दी जाती है। यह सब्सिडी किसानों को जैविक खेती की ओर आकर्षित करने और उनकी लागत को कम करने में मदद करती है। सरकार का यह कदम किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
FPOs के लिए सरकारी सहायता (Government Support for FPOs)
किसान उत्पादक संगठन (FPOs) को उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है। FPOs किसानों को संगठित करके उन्हें जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण, आधुनिक तकनीक और बाजार तक पहुंच प्रदान करते हैं। सरकार इन संगठनों को वित्तीय सहायता देकर उन्हें मजबूत बनाने का काम करती है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।
जैविक खेती प्रमाणीकरण (Organic Farming Certification)
जैविक उत्पादों को बेचने के लिए प्रमाणीकरण (Certification) जरूरी है। यह प्रमाणीकरण उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाता है कि उत्पाद वास्तव में जैविक तरीकों से उगाए गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को इस प्रमाणीकरण प्रक्रिया में मदद करती है और उन्हें आवश्यक दस्तावेज तैयार करने में सहायता प्रदान करती है। इसके लिए किसानों को राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) के तहत आवेदन करना होता है।
5. चुनौतियां और अपेक्षाएं
कृषि बजट 2025 उत्तर प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने का एक मौका है। उत्तर प्रदेश किसान के अनुसार, गंगा किनारे क्लस्टर आधारित जैविक खेती शुरू की गई है, लेकिन उर्वरक कीमतों में 30-40% वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, और भूमि विखंडन चुनौतियां हैं। CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, मिट्टी क्षरण और पानी की कमी से आय दोगुनी करना मुश्किल हो सकता है। बजट में सौर पंप के लिए 15,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जिससे सिंचाई लागत 20-25% कम होगी।
ICAR के अनुसार, राज्य का 60% कृषि क्षेत्र बारिश पर निर्भर है, जबकि NIAP बताता है कि उर्वरक सब्सिडी का 60% बड़े किसानों को मिलता है। डिजिटल खेती के लिए 2,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी से ड्रोन और स्मार्ट सिंचाई को बढ़ावा मिलेगा। MSP की कानूनी गारंटी की मांग पर नीति आयोग कहता है कि केवल 6% किसानों को लाभ मिलता है; बजट में धान-गेहूं के MSP में 5-7% वृद्धि हुई है।
6. उपयोगी वेबसाइट लिंक (Useful Website Links)
Consolidated Research Insights with Website Links:
- उर्वरक: 30-40% कीमत वृद्धि – NIAP
- जल: 60% क्षेत्र बारिश पर निर्भर – ICAR
- MSP: 6% किसानों को लाभ – नीति आयोग
- डिजिटल खेती: 15-20% उत्पादकता वृद्धि – IARI
- इंटरनेट: 50% ग्रामीण कवरेज – TRAI
- सौर ऊर्जा: 50% डीजल कमी – NREL
- FPO: 30% बाजार पहुंच – नीति आयोग
- जलवायु: 10-15% उत्पादन जोखिम – CSE
- उत्तर प्रदेश कृषि विभाग
- भारत सरकार कृषि मंत्रालय
- जैविक खेती प्रमाणीकरण
- FPOs के लिए सरकारी योजनाएं
- FPO के लिए प्रमुख बैंक ऋण योजनाएँ
संपर्क विवरण:
एफपीओ कार्यालय: कृषक उत्पादक संगठन एवं औद्यानिक विपणन सहकारी समिति लिमिटेड, टिकरी, वाराणसी
संपर्क: 7054897777, 8174919999
ईमेल: fpokashividyapeeth@gmail.com
Very informative